दिकसूचक (compasses) - सर्वेक्षक दिकसूचक (Surveyor compass), प्रिजमेटिक दिकसूचक (Prismatic Compass),दिकसूचक से दिकमान पठन (Taking Bearing from a compass) -1. केंद्रन (Centering),2. समतलन (Levelling),3. प्रेक्षण (Observation),सर्वेक्षक दिकसूचक वा प्रिजमेटिक दिसूचक में तुलना (Comparison in between Surveyor and Prismatic Compasses)
दिकसूचक (compasses)
सर्वेक्षक दिकसूचक मे दिकमान चतुर्थश दिकमान प्रणाली में पढ़े जाते हैं |
रचना
सर्वेक्षक दिकसूचक एक पुराना दिशा मापी उपकरण है | इसे खान दिकसूचक (Miner's Dial) भी कहते हैं | यह पीतल का 125mm व्यास का गोल बक्सा होता है, जिसकी परिधि पर दो वेधिकाये दर्शा तथा दृश्य वेधिकाये ठीक एक-दूसरे के आमने-सामने ( व्यासीय विपरीत दिशा में ), कब्ज़ाे द्वारा लगी होती है | प्रयोग के समय इनको ठीक ऊर्ध्वाधर खड़ा कर लिया जाता है | दर्शा वेधिका में एक ऊर्ध्वाधर झिर्री होती है जिससे लक्ष्य की ओर देखा जाता है | दृश्य वेधिका की झिर्री में एक ऊर्ध्वाधर घुड़ बाल लगा रहता है, जो लक्ष्य बेधने के काम आता है |
Surveyor compass
The dimensions of the surveyor's compass are read in the quadrantal bearing system.
Composition
Surveyor's compass is an old direction measuring instrument. It is also called Miner's Dial. It is a brass round box of 125 mm diameter, on whose circumference two vanes such as eye vane and object vane are exactly opposite to each other (in diametrically opposite direction), by possession. At the time of use, they are erected exactly vertical. The bore shown has a vertical slit from which the target is viewed. In the slit of the visual aperture, a vertical swirl is attached, which is useful for penetrating the target.
सुई या सूचिका
सर्वेक्षक दिकसूचक की सुई के दोनों सिरे आगे से नुकीले होते हैं | सुई केंद्र में कीलक पर स्वच्छंद घूम सकती हैं और चुंबकीय याम्योत्तर दिशा पर आकर रूकती है |
Magnetic Needle
The needle of the surveyor's compass is pointed at both ends. The needle can rotate freely on the rivet in the center and stop at the magnetic meridian.
अशांकित चक्री या कार्ड
सर्वेक्षक दिकसूचक की आशंकित चक्री सुई से जुड़ी ना होकर, स्थाई रूप से बक्से के साथ जुड़ी रहती है, और बक्से के घुमाने पर इसके साथ घूमती है | अशांकित चक्री पर निशान चतुर्थश (Quadrants) प्रणाली में बने रहते हैं | उत्तर (N) तथा दक्षिण (S) दिशाओं पर शून्य अंक (Zero) होता है और पूर्व (E) तथा पश्चिम (W) दिशा में 90° के अंक बने रहते हैं, परंतु चक्री पर पूर्व (E) व पश्चिम (W) अक्षरों की स्थिति अदल बदल दी जाती है | सर्वेक्षक दिकसूचक में आधी डिग्री तक निशान बने रहते हैं |
Graduated Ring
The Graduated Ring of the surveyor compass remains permanently attached to the box, not attached to the needle, and rotates with it when the box is rotated. The marks on the Graduated Ring remain in the Quadrants bearing system. The north (N) and south (S) directions have zero points (Zero) and the east (E) and west (W) directions have 90° points, but . The positions of east (E) and west (W) points on the ring are swapped. The marks in the surveyor's compass remain up to half a degree.
प्रयोग
दिकसूचक को स्टेशन बिंदु पर एक त्रिपाद पर सेट करके, दर्शा वेधिका की झिर्री से लक्ष्य को देखा जाता है | दृष्टि रेखा ( line-of-sight ) दर्शा वेधिका की झिर्री, दृश्य वेधिका मे लगे घुड़ बाल को काटती हुई लक्ष्य को बेधती है | जब यह तीनों एक सीध में हो जाये तो घूम कर उत्तरी सिरे पर सुई की नोक को ( कांच ढक्कन के नीचे की तरफ ) देखते हुए, पाठयाक पढ़ा जाता है |
लक्ष्य बेधने से पहले दृष्टि रेखा तथा सुई ठीक शून्य (N) पर होगी और दृष्टि रेखा का मान शून्य होगा | मान लक्ष्य उत्तर से पूर्व दिशा की ओर स्थित है | लक्ष्य को बेधने पर चुंबकीय सुई तो ठीक अपने पूर्वव्रत दिशा ( चुंबकीय याम्योत्तर ) मे बनी रहेगी, परंतु अशांकित चक्री जो बक्से के साथ जुड़ी हुई है, पूर्व की ओर घूम कर लक्ष्य की ओर जाएगी | अब हम पाठक पश्चिम के चतुर्थांश पर पढ़ रहे हैं, जबकि वास्तव में लक्ष्य पूर्व दिशा में स्थित है और उपकरण भी पूर्व दिशा की ओर ही घुमाया गया है | इस दिशा भ्रम को दूर करने के लिए E व W अक्षरों के स्थान अदल बदल कर दिये जाते हैं |
Experiment
By setting the compass on a tripod at the station point, the target is viewed through the slit of the aperture shown. The slit of the aperture showing the line-of-sight pierces the target by cutting the hairs attached to the visual hole. When all these three are in a straight line, then turning around and looking at the tip of the needle at the northern end (on the underside of the glass lid), the text is read.
The line of sight and the needle will be exactly zero (N) before hitting the target and the line of sight will have zero value. Concider that target is located from north to east direction. On hitting the target, the magnetic needle will remain exactly in its easterly direction (magnetic meridian), but the Graduated Ring,which is attached to the box, will rotate east towards the target. Now we are reading on the west quadrant of the reader, when actually the target is located in the east direction and the instrument is also rotated towards the east. To remove this direction confusion, the places of the letters E and W are interchanged.
सावधानियां
पाठयाक लेने से पहले, दिकसूचक के कांच के ढक्कन को धीरे से थपथपा देना चाहिए ताकि सुई स्वच्छंद घूम सके | यदि सुई अधिक मुक्त हो गई है और ठहरने में अधिक समय लेती है तो उत्थापक पिन को धीरे से दबाकर छोड़ दें | ऐसा करने से उत्थापक लीवर सुई को छू कर इसे स्थिर कर देगा |
कांच ढक्कन के गंदा दिखने पर, इसे बार-बार रुमाल से रगड़ कर साफ़ नहीं करना चाहिए | ऐसा करने से इसमे विद्युत आवेश आ जाता है और सुई ढक्कन से चिपक जाती है | कांच पर गिला हाथ फेरने से स्थैतिक विद्युत चार्ज नष्ट हो जाता है |
दिकसूचक से काम लेते समय इसके निकट चुंबकीय वस्तुओं, जैसे चाबी का गुच्छा, लोहे का कड़ा, इस्पात के फ्रेम वाला चश्मा, स्टील,पेन इत्यादि को दूर रखना चाहिए |
Precautions
Before taking the reading, the glass cover of the compass should be gently tapped to allow the needle to move freely. If the needle is too loose and takes longer to stay in place, gently press and release the lifting pin. Doing so will allow the lifting lever to touch the needle and stabilize it.
If the glass lid looks dirty, it should not be cleaned by repeatedly rubbing it with a napkin. By doing this an electric charge comes into it and the needle sticks to the lid. Static electric charge is dissipated by touching the glass with wet hands.
Magnetic objects such as key chain, iron handle, steel frame glasses, steel pens, etc. should be kept away from it while working with the compass.
प्रिजमेटिक दिकसूचक (Prismatic Compass)
प्रिजमेटिक दिकसूचक में दिकमान पूर्णव्रत दिकमान प्रणाली में पढे जाते हैं |
इसकी विशेषता यह है कि लक्ष्य भेदन तथा चक्री पठन एक साथ ही संपन्न होते है और सर्वेक्षक को अपनी स्थिति बदलनी नहीं पड़ती है |
Prismatic Compass
In prismatic compasses, the bearing are read in whole circle bearing system.
Its specialty is that the target penetration and graduated ring reading are done simultaneously and the surveyor does not have to change his position.
रचना
प्रिजमेटिक दिकसूचक मे दर्शा वेधिका पट्टी के निचले भाग पर एक त्रिभुजाकार प्रिज़्म लगी रहती है, इसलिए इसे प्रिजमेटिक दिकसूचक कहते हैं | प्रिज़्म, आशंकित चक्री पर उल्टे खुदे डिग्री के निशानों को सीधा व बड़ा करके दिखाती है |
प्रिजमेटिक दिसूचक 80mm से 150mm व्यास का पीतल का गोल बक्सा होता है, जिसके मध्य में कीलक के ऊपर चुंबकीय सुई टंकी रहती है, जो सदा चुंबकीय याम्योत्तर दर्शाती है | इस दिकसूचक मे अशांकित चक्री एलमुनियम की बनी होती है और स्थाई रूप से चुंबकीय सुई ( संकेतक )से जुड़ी रहती है और इसके साथ ही घूमती है | चक्री पर 0°-360° तक निशान होते हैं |
यह निशान दक्षिणावर्त दिशा में बढ़ते हैं | दक्षिणी (S) सिरे पर शून्य या 360° का अंक, पश्चिमी (W) सिरे पर 90°, उत्तरी (N) सिरे पर 180° तथा पूर्वी (E) सिरे पर 270° के निशान बनाए जाते हैं | यह इसलिए किया गया है, क्योंकि पाठयाँक प्रिज़्म के द्वारा दक्षिणी सिरे पर पढ़े जाते हैं, जो लक्ष्य के ठीक 180° पर स्थित है |
दिकसूचक बॉक्से की परिधि पर, ठीक व्यासीय विपरीत दिशा में दृश्य वेधिका तथा दर्शा वेधिका की ऊर्ध्वाधर पट्टीया कब्जों से लगी रहती हैं | जब उपकरण प्रयोग में ना किया जा रहा हो, तो इन वेधिकाओ को कांच ढक्कन पर क्षेतिज लिटा दिया जाता है | दृश्य वेधिका की झिर्री मे घोड़े का बाल अथवा महीन तार लगाया जाता है | दर्शा वेधिका में महीन ऊर्ध्वाधर झिर्री बनी रहती है और निचले भाग पर एक प्रिज़्म लगी रहती है | प्रिज़्म को दर्शा वेधिका की पट्टी पर ऊपर नीचे सरकाया जा सकता है ताकि फोकस करके चक्री पर पाठयाक पढ़े जा सके | प्रिज़्म तथा चक्री के बीच की ऊंचाई (दूरी ) प्रेषक की नजर ( eye sight) पर निर्भर करती है और प्रेषक के बदलने पर यह दूरी पुना समंजित करनी पड़ सकती है |
दृश्य वेधिका तथा दर्शा वेधिका मिलकर एक सीधी दृष्टि रेखा ( line-of-sight ) बनाती हैं, जो लक्ष्य को बेधती हैं यह दृष्टि रेखा ही लक्ष्य का चुंबकीय याम्योत्तर से कोण दर्शाती है |लक्ष्य को बेधने के लिए बक्से को घुमाया जाता है, जिससे बेधिकाय लक्ष्य की दिशा में आ जाती हैं, परंतु चुंबकीय सुई ठीक चुंबकीय उत्तर में रहती है |
अधिक ऊंचे अथवा नीचे स्थित लक्ष्याे को बेधने के लिए, दृश्य बेधिका पर ऊपर नीचे सरकने वाली एक दर्पण पट्टी लगी रहती है, जिस पर लक्ष्य का प्रतिबिम्ब दिखाई पड़ता है |
तेज़ धूप के लिए अथवा चमक देने वाले लक्ष्याे को बेधने के लिए दर्शा वेधिका पर एक जोड़ी रंगीन कांच ( हरा व लाल ) लगे रहते है |
Composition
A triangular prism is fixed on the lower part of the eye vane shown in the prismatic compass, hence it is called a prismatic compass. The prism shows the degree marks inverted on the apposed wheel by erecting and magnifying them.
A prismatic compass is a brass round box 80mm to 150mm in diameter, in the center of which is the magnetic needle tank on top of the rivet, which always shows magnetic meridian. In this compass, the graduated ring is made of aluminum and is permanently attached to the magnetic needle (indicator) and rotates with it. There are marks on the wheel from 0°-360°.
These marks move in a clockwise direction. A mark of zero or 360 ° is made at the southern (S) end, 90 ° at the western (W) end, 180 ° at the north (N) end and 270 ° at the eastern (E) end. This is done because the readings are read through the prism at the southern end, which is exactly 180° to the target.
On the periphery of the compass box, the object vane in the diametrically opposite direction and the vertical strip of the eye vane are attached to the hinges. When the equipment is not in use, these vanes are placed horizontally on the glass lid. Horse hair or fine wire is applied to the slit of the object vane. A fine vertical slit remains in the eye vane and a prism is fixed at the bottom. The prism can be moved up and down on the bar of the eye vane so that the reader can be focused and read on the ring. The height (distance) between the prism and the wheel depends on the eye sight of the reader, and this distance may need to be re-adjusted as the reader changes.
The eye vane and the object vane together form a line-of-sight, which pierces the target. This line-of-sight shows the angle of the target's from magnetic meridian. The box moves in the direction of the target, but the magnetic needle remains exactly in magnetic north.
To penetrate higher or lower targets, a sliding mirror bar is attached to the object vane, on which the image of the target is visible.
A pair of colored glasses (green and red) are placed on the perforation shown for strong sunlight or for penetrating shining targets.
प्रयोग
प्रिजमेटिक दिकसूचक को हाथ से थाम कर भी दिशा मापन किया जा सकता है, परंतु उत्तम परिणाम के लिए
इसे हल्के त्रिपाद पर कसकर ही दिकमान लेना चाहिए |
Experiment
Direction measurement can also be done by holding the prismatic compass by hand, but for best results It should be taken tightly on the light tripod.
दिकसूचक से दिकमान पठन (Taking Bearing from a compass)
दिकसूचक से दिकमान पढ़ने के लिए निम्न तीन चरण अपनाएं जाते हैं -
Taking Bearing from a compass
The following three steps are adopted to read the bearing from the compass -
1. केंद्रन (Centering)
दिकसूचक को त्रिपाद पर कसकर इसको स्टेशन के ठीक केंद्र बिंदु पर रखा जाता है | केंद्रन के लिए दिकसूचक के अक्ष से एक कंकरी गिराई जाती है जो स्टेशन खूंटी के ठीक ऊपर पडनी चाहिए | त्रिपाद को भूमि से इतनी ऊंचाई पर स्थापित करना चाहिए कि प्रेक्षक बगैर झुके अथवा उचके उपकरण पर कार्य कर सकें |
1. Centering
The compass is placed tightly on the tripod and it is placed at the exact center point of the station. For centering, a stone is dropped from the axis of the compass which should fall just above the station peg. The tripod should be placed at such a height from the ground that the observer can work on the equipment without bending or lifting it.
2. समतलन (Levelling)
बाल एवं सॉकेट (Ball and Socket) व्यवस्था से दिकसूचक को ठीक क्षेतिज किया जाता है ताकि आशंकित चक्री स्वच्छंद घूम सकें | एक पेंसिल को कांच ढक्कन पर चला कर दिकसूचक के समतलन की जांच की जाती है |
2. Leveling
The ball and socket arrangement allows the compass to be precisely horizontal so that the graduated ring can move freely. The alignment of the compass is checked by running a pencil over the glass lid.
3. प्रेक्षण (Observation)
दिकसूचक को त्रिपाद पर सेट करने के बाद बक्से को धीरे से लक्ष्य (आरेखन दंड ) की ओर घुमाया जाता है और लक्ष्य, दृश वेधिका तथा दर्शा वेधिका तीनों को सीधी दृष्टि रेखा पर लाया जाता है | अब प्रिज़्म को सेट करके चक्री पर पाठयाक पढ़ा जाता है | चक्री पर पाठयाक पढ़ते समय चुंबकीय सुई स्थिर होनी चाहिए | इसकी गति को अवमंदित करने के लिए, दृश्य वेधिका के नीचे लगी ब्रेक पिन को धीरे से दबा कर छोड़ दिया जाता है | प्रिज्म को भी ऊपर नीचे सरका कर पाठयाक को स्पष्ट दीखता कर लिया जाता है |
प्रिज़्म दिसूचक में आधी डिग्री (30°) तक निशान बने रहते हैं, परंतु 15' तक मापन शुद्धता से की जा सकती है |
3. Observation
After the compass is set on the tripod, the box is slowly swung towards the target (the ranging rod) and the target, the eye vane and the object vene are all brought to a straight line of sight. Now the reader is read on the graduated ring by setting the prism. The magnetic needle should be stationary while reading the text on the ring. To dampen its speed, the brake pin at the bottom of the object vane is gently depressed and released. By sliding the prism up and down, the reader is clearly visible.
The prism compass retains markings up to half a degree (30°), but can be measured accurately up to 15'.
सर्वेक्षक दिकसूचक वा प्रिजमेटिक दिकसूचक में तुलना (Comparison in between Surveyor and Prismatic Compasses)
A. चुंबकीय सुई (Magnatic needle)
1. सर्वेक्षक दिकसूचक मे सुई के सिरे आगे से नुकीले (Edge Bar) होते हैं और यह संकेतक का काम भी करते है |
1. प्रिजमेटिक सूचक मे चुंबकीय सुई चौड़ी पट्टी की बनी होती है अतः यह संकेतक का काम नहीं करती है |
A. Magnetic needle
1. The end of the needle in the surveyor's compass is edge bar type and it also acts as an indicator.
1. The magnetic needle in a prismatic compass is made of a broad needle, so it does not work as a pointer.
B. अशांकित चक्री (Graduated ring)
2. सर्वेक्षक दिकसूचक मे आशंकित चक्री कंपास के बक्से से स्थाई रूप से जुड़ी रहती हैं और वेधिकाओ (Vanes) के साथ घूमती है |
2. प्रिजमेटिक सूचक मे अशांकित चक्री बक्से से जुड़ी ना होकर चुंबकीय सुई के साथ जुड़ी रहती है और वेधिकाओं के साथ नहीं घूमती है |
3. सर्वेक्षक दिकसूचक में चक्री पर निशांन चतुर्थांश दिकमान (Q.B) प्रणाली में 0° से 90° तक बने होते हैं और E तथा W के निशान अदल-बदल दिये जाते हैं | परंतु इनका मान 90° ही रहता है |
3. प्रिजमेटिक दिसूचक मे चक्री पर निशान पूर्ण व्रत (W. C. B) प्रणाली मे 0° से 360° तक बने होते हैं, परंतु S पर 0° या 360°, W पर 90°, N पर 180° तथा E पर 270° के निशान होते हैं |
4.सर्वेक्षक दिकसूचक मे चक्री पर निशान सीधे खुदे रहते हैं और सीधे ही दिखाई पड़ते हैं |
4.प्रिजमेटिक दिसूचक मे चक्री पर निशान उलटे खुदे होते हैं, जो प्रिज्म द्वारा पढ़ने पर सीधे तथा बड़े आकार के दिखाई पड़ते है |
B. Graduated ring
2. In the surveyor's compass, the graduated ring is permanently attached to the compass box and rotates with the vanes.
2. In prismatic compass, the graduated ring is not attached to the box but is attached to the magnetic needle and does not rotate with the vanes.
3. In the surveyor's compass, the marks on the ring are made in the Quadrant bearing (Q.B) system from 0° to 90° and the marks of E and W are interchanged. But their value remains only 90°.
3. In prismatic compass, the marks on the ring are made from 0° to 360° in whole circle (W C B) system, but there marks are 0° or 360° at S, 90° at W, 180° at N and 270° at E.
4. In the surveyor's compass, the marks on the ring are engraved directly and are visible directly.
4. In the prismatic compass, the marks on the ring are inverted, which when read through a prism appear straight and of large size.
C. वेधिकाये (vanes)
5. सर्वेक्षक दिकसूचक मे दर्शा वेधिका एक ऊर्ध्वाधर झिरी के रूप में होती है |
5.प्रिजमेटिक दिसूचक मे दर्शा वेधिका एक पतली सिल्ट के रूप में होती है, जिसके साथ प्रिज़्म लगी रहती है |
6.सर्वेक्षक दिकसूचक मे दृश्य वेधिका की पतली ऊर्ध्वाधर झिरी में महीन बाल या महीन तार लगा रहता है जो दृष्टि रेखा बनाता है |
6. प्रिजमेटिक दिसूचक मे दृश्य वेधिका की पतली झिरी में महीन तार अथवा घोड़े का बाल लगा रहता है |
C. vanes
5. The eye vane shown in the surveyor's compass is in the form of a vertical slit.
5. The eye vane shown in the prismatic compass is in the form of a thin silt, with which the prism is attached.
6. In the surveyor's compass, a fine hair or fine wire is attached to the thin vertical slit of the object vane, which forms the line of sight.
6. In the prismatic compass, a fine wire or horse hair is attached to the thin slit of the object vane.
D. दिकमान पठन (Bearings )
7. सर्वेक्षक दिकसूचक मे अशांकित चक्री पर निशान सीधे बने होते हैं, अतः यह काच ढक्कन के ऊपर से सीधे ही पढ़े जाते हैं |
7. प्रिजमेटिक दिकसूचक चक्री पर निशान उल्टे खुद होते हैं अतः यह ऊपर से नहीं पढ़े जा सकते हैं, इन्हें प्रिज्म की सहायता से ही पढ़ा जाता है |
8. सर्वेक्षक दिकसूचक मे पहले दर्शा वेधिका से लक्ष्य को देखा जाता है, फिर बाय घूमकर चक्री पर पाठयाक पढ़ा जाता है | दोनों कार्य, लक्ष्य वेधन तथा पठन एक ही स्थिति में नहीं हो सकते हैं |
8. प्रिजमेटिक दिकसूचक लक्ष्य वेधन तथा चक्री पर दिकमान पठन, दोनों क्रियाये यहां प्रेक्षक द्वारा आंख की एक ही स्थिति में तथा एक साथ संपन्न की जा सकती है, अतः पाठयाक लेने में दिक्कत नहीं होती है |
D. Bearings
7. In the surveyor's compass, the marks are made straight on the graduated ring, so it is read directly from the top of the glass lid.
7. The marks on the prismatic compass are inverted themselves, so they cannot be read from above, they are read only with the help of a prism.
8. In the surveyor's compass, the target is first seen from the eye vane, then the reader is read on the graduated ring by turning left. Both the work, target penetrating and reading cannot be done in the same position.
8. Prismatic compass target penetrating and reading on the ring, both the actions can be performed here by the observer in the same position of the eye and at the same time, so there is no problem in taking the reader.
E. अन्य विशेषताएं
9. सर्वेक्षक दिकसूचक मे दर्शा वेधिका पर कोई सलग्नक नहीं होता है |
9.प्रिजमेटिक दिकसूचक मे दर्शा वेधिका के साथ परावर्ती प्रिज़्म में लगी रहती है, जिससे चक्री के अंक सीधे तथा बड़े आकार के दिखते हैं |
10.सर्वेक्षक दिकसूचक मे दृश्य बेधिका साधारण प्रकार की होती है | आंख की ऊंचाई पर ही लक्ष्य बेधन संभव है |
10. प्रिजमेटिक दिकसूचक मे दृश्य बेधिका पर दर्पण पट्टी लगी रहती है, जिसमें ऊंचाई / गहराई पर स्थित लक्ष्यों का भी बेधन किया जा सकता है |
11.सर्वेक्षक दिकसूचक उपकरण को त्रिपाद पर कसकर ही काम में लाया जाता है |
11.प्रिजमेटिक दिकसूचक उपकरण को हाथ में पकड़ कर अथवा त्रिपाद पर कसकर काम में लाया जाता है |
E. Other Features
9. There is no attachment on the eye vane in the surveyor's compass.
9. In prismatic compass eye vane is attached to the reflecting prim, which makes the points of the graduated ring appear straight and large.
10. The object vane in the surveyor's compass is of simple type. Target piercing is possible only at eye height.
10. In prismatic compass, a mirror bar is attached to the object vane, in which targets located at height / depth can also be pierced.
11. The surveyor's compass is used tightly on the tripod.
11. The prismatic compass tool is used by holding it in the hand or tightly on the tripod.
F. प्रयोग
12. अब सर्वेक्षक दिकसूचक का प्रयोग कम हो गया है |
12. प्रिजमेटिक दिकसूचक का प्रयोग अधिक है क्योंकि यह सर्वेक्षक कंपास से अधिक सुग्राही है और पठान में कम समय लगता है |
F. Experiment
12. Now the use of surveyor's compass is reduced.
12. The use of prismatic compass is more because it is more sensitive than surveyor compass and takes less time in reading.