Skip to main content

चुंबकीय दिकपात (Magnetic Declination),A.शून्य दिकपाती रेखा (Agonic Lines),B.सम दिकपाती रेखा (Isogonic Lines),दिकपात विचरण (Variation in Magnetic Declination), सत्य दिकमान ज्ञात करना (Calculations of True Bearing)

दिकपात (Declination)

 ऐसा देखा गया है कि कुछ स्थानों को छोड़कर, पृथ्वी की अन्य जगहों पर चुंबकीय याम्योत्तर  (Magnetic Meridian), भौगोलिक याम्योत्तर (True Meridian) से ठीक मेल (Coincide) नहीं खाता है | इसका कारण पृथ्वी पर चुंबकीय बलो की दिशा में भिन्नता होना बताया जाता है | अतः चुंबकीय याम्योत्तर सत्य याम्योत्तर के दायी अथवा बाई तरफ झुक जाता है | चुंबकीय याम्योत्तर, इस प्रकार झुक कर भौगोलिक याम्योत्तर से जो क्षेतिज कोण बनाता है, उसे चुंबकीय दिकपात अथवा दिकपात कहते हैं |

 जब चुंबकीय याम्योत्तर, भौगोलिक याम्योत्तर के दायी तरफ ( पूर्व दिशा में ) झुकता है, तो इसे पूर्वी  (धनात्मक ) दिकपात कहते हैं, जब यह बायी ओर ( पश्चिम दिशा में ) झुकता है, तो इसे पश्चिमी  ( ऋणात्मक )दिकपात के नाम से जाना जाता है |

 भौगोलिक याम्योत्तर खगोलिक प्रेक्षण द्वारा स्थापित किया जाता है और चुंबकीय याम्योत्तर किसी भी दिकसूचक से ज्ञात कर लिया जाता है | इन दोनों का कोणीय अंतर ही चुंबकीय दिकपात कहलाता है |

 चुंबकीय दिकपात का मान सदा एक समान नहीं रहता है | पृथ्वी के अलग-अलग स्थानों पर तथा एक ही जगह पर भी भिन्न-भिन्न समय में बदलता रहता है | दिकपात के मान में इस प्रकार परिवर्तन को दिकमान विचरण कहते हैं |

 सभी महत्वपूर्ण सर्वेक्षण तथा भूकर संबंधी स्थाई नक़शे भौगोलिक याम्योत्तर के संदर्भ में तैयार किए जाते हैं | इसलिए चुंबकीय दिकपात ज्ञात करना आवश्यक हो जाता है | विभिन्न देशों में दिकपात दर्शाने वाले चार्ट बनाए गए हैं |

 यहां यह स्पष्ट करना जरूरी है कि चुंबकीय दिकपात (Magnetic Declination) और चुंबकीय नमन,नति (Magnetic Dip) मे अंतर है | चुंबकीय दिकपात मे कंपास की सुई का भौगोलिक याम्योत्तर से भटक जाना है, जबकि चुंबकीय नमन में सुई का ठीक क्षेतिज न रहकर, ध्रुवों की तरफ इसके सिरे का झुक जाना है |


Declination

 It has been observed that except in a few places, the magnetic meridian at other places on the earth does not match the true meridian exactly. The reason for this is said to be the difference in the direction of the magnetic forces on the earth. Hence the magnetic meridian tilts to the right or left of the true meridian. Magnetic meridian, the horizontal angle it makes with the geographic meridian by bending in this way, is called magnetic declination.

 When the magnetic meridian is tilted to the right (in the east) of the geographic meridian, it is called an eastern (positive) declination; when it is deflected to the left (in the west), it is called a western (negative) declination. goes to

 The geographic meridian is established by astronomical observations and the magnetic meridian is determined by any compass. The angular difference between these two is called magnetic declination.

 The value of the magnetic field is not always the same. It varies at different places on the earth and also at the same place at different times. Such a change in the value of magnitude is called magnitude variance.

 All important survey and cadastral permanent maps are prepared with reference to the geographical meridian. Hence it becomes necessary to find the magnetic field. Charts showing the declination in different countries have been made.

 It is necessary to clarify here that there is a difference between Magnetic Declination and Magnetic Dip. In magnetic declination, the compass needle is deviating from the geographic meridian, whereas in magnetic dipping, the needle is bent towards the poles, without being exactly horizontal.


A.शून्य दिकपाती रेखा (Agonic Lines)

 यह काल्पनिक रेखा है जिस पर पढ़ने वाले बिंदुओं का चुंबकीय दिकपात शून्य होता है | वर्तमान में यह रेखा मैचिंगन, इंडियाना व दक्षिणी केरोलीना स्थानों से पारित होती है |

A.Agonic Lines

 This is an imaginary line on which the magnetic field of the reading points is zero. Currently this line passes through places like Matchingen, Indiana and South Carolina.


B.सम दिकपाती रेखा (Isogonic Lines)

 जिन स्थानों पर चुंबकीय दिकपात का मान समान है, उन स्थानों को मिलाने वाली काल्पनिक रेखा, समदिकपाती रेखा कहलाती है |

B.Isogonic Lines

 The imaginary line joining the places where the value of magnetic declination is same is called isotropic line.


दिकपात विचरण (Variation in Magnetic Declination)

प्रेक्षणो से यह ज्ञात हुआ है कि किसी बिंदु पर चुंबकीय दिकपात का मान सदा एक ही नहीं रहता है | यह समय, स्थान व मौसम के बदलने के साथ बदलता रहता है | यह सूर्य के समय के साथ भी बदल जाता है | विचरण का मान विषुवत रेखा के पास कम और ध्रुवों पर अधिक होता है | यह विचरण कर ग्रीष्म ऋतु में अधिक और शरद ऋतु में कम पाया गया है | इसको दिकपात विचरण कहते हैं |दिकपात विचरण निम्न दो वर्गों मे रखा गया है |

A.नियमित विचरण (Regular Variation)

B. अनियमित विचरण (Irregular Variation)

 नियमित विचरण भी निम्न प्रकार का होता है -

1. दैनिक विचरण  (Diurnal or Daily Variation)

2. वार्षिक विचरण (Annual Variation)

3. दीर्घकालिक विचरण  (Secular Variaion)


Variation in Magnetic Declination

 It has been found from observations that the value of the magnetic field at any point does not always remain the same. It varies with the change of time, place and season. It also changes with the time of the Sun. The value of variance is less near the equator and greater at the poles. This variation has been found to be more in summer and less in autumn. This is called declination variance. declination variance is placed in the following two classes.

 A.Regular Variation

 B. Irregular Variation


 The regular variance is also of the following types:

 1. Daily Variation  (Diurnal or Daily Variation)

 2. Annual Variation

 3. Secular Variation


24 घंटों के अंदर होने वाले विचरण को दैनिक विचरण कहते हैं |विचरण का मान, रात में, दिन की अपेक्षा तथा प्रातः व संध्या में, दोपहर की अपेक्षा कम होता है | 1 वर्ष में होने वाले विचरण को वार्षिक विचरण कहते हैं |

 दैनिक तथा वार्षिक विचरण का मान एक ही स्थान पर बहुत कम होता है (1' से 10" तक ), परंतु दीर्घकालिक विचरण का मान पर्याप्त अधिक पाया गया है |(10° से 30° तक पूर्व अथवा पश्चिम को )| यह दीवार घड़ी के पेंडुलम की भांति अपनी स्थिति बदलता है | उदाहरण के तौर पर 1680 मे पेरिस में चुंबकीय दिक पात 11°E था, जो 1820 मे 22° W की ओर चला गया था | अतः स्थायी सर्वेक्षण कार्यों में दीर्घकालिक विचरण पर विशेष ध्यान दिया जाता है |

 अनियमित विचरण और धब्बों (Sun spots), चुंबकीय तूफानों  (Magnetic Storms), पृथ्वी के चुंबक बलों में बिक्षाेभ, ज्वालामुखी फटने आदि कारणों से होता है | इसका मान एक समय में 1° से 2° तक होता है |

 दिकपात में विचरण को देखते हुए, स्थायी सर्वेक्षण नक़्शो पर सर्वेक्षण तिथि तथा क्षेत्र में दिकपात का मान व विचरण देना जरूरी है | सभी स्थाई भूकर नक्शे सत्य (भागोलिक ) दिकपात के आधार पर ही बनाए जाते हैं |


The variation that occurs within 24 hours is called daily variance. Variation occurring in 1 year is called annual variance.

 The values ​​of daily and annual variance are very small at the same place (from 1' to 10"), but the values ​​of long term variance have been found to be high enough (from 10° to 30° to east or west). This wall clock changes its position like a pendulum.

 Irregular variations and spots occur due to sun spots, magnetic storms, disturbances in the earth's magnetic forces, volcanic eruptions etc. Its value ranges from 1° to 2° at a time.

 In view of the variation in intensity, it is necessary to give the survey date and the magnitude and variance of the intensity in the area on the permanent survey maps. All permanent cadastral maps are made on the basis of true (geographical) Declination.


 सत्य दिकमान ज्ञात करना (Calculations of True Bearing)

 सत्य दिकमान  = चुंबकीय दिकमान  ±  दिकपात
(True Bearing = Magnetic Bearing ± Declination)

 जब दिकपात पूर्व में हो तो (+) चिन्ह लगाएं, यदि पश्चिम में हो  तो (-) चिन्ह का प्रयोग करे |
 यह नियम पूर्णवृत दिकमान प्रणाली के लिए है | समानीत प्रणाली के लिए चित्र बनाकर रेखा की स्थिति स्पष्ट करें |


Calculations of True Bearing

 (True Bearing = Magnetic Bearing ± Declination)

 When Declination is in East then put (+) sign, if it is in West then use (-) sign.

 This rule is for the whole circle bearing system. Explain the position of the line by drawing a diagram for a reduced bearing system.


Popular posts from this blog

भवनों के प्रकार (Types of Building) - (1) आवासीय भवन (Residential Buildings)(2) सार्वजनिक भवन (Public Buildings)(3) व्यवसायिक भवन (Commercial Buildings )(4) औद्योगिक भवन (Industrial Buildings)(5) धार्मिक तथा ऐतिहासिक भवन (Religious and Historical Buildings), उपयोग के आधार पर राष्ट्रीय भवन संहिता में भवनों को निम्न 9 वर्गों में रखा गया है -वर्ग A - आवासीय भवन (Residential)वर्ग B - शैक्षणिक भवन (Educational)वर्ग C - संस्थागत भवन (Institutional)वर्ग D - सभा भवन (Assembly)वर्ग E - व्यवसायिक भवन (Business)वर्ग F - वाणिज्यिक भवन (Mercantile)वर्ग G - औद्योगिक भवन (Industrial)वर्ग H - भंडार भवन (Storage)वर्ग J - जोखिम वाले भवन (Hazardous)

भवनों के प्रकार (Types of Building)  प्रयोग की दृष्टि से भवन निम्नलिखित प्रकार के होते हैं (1) आवासीय भवन (Residential Buildings) (2) सार्वजनिक भवन (Public Buildings) (3) व्यवसायिक भवन (Commercial Buildings ) (4) औद्योगिक भवन (Industrial Buildings) (5) धार्मिक तथा ऐतिहासिक भवन (Religious and Historical Buildings) Types of Building   From the point of view of building, the following types are  (1) Residential Buildings  (2) Public Buildings  (3) Commercial Buildings  (4) Industrial Buildings  (5) Religious and Historical Buildings (1) आवासीय भवन (Residential Buildings)  व्यक्ति अथवा परिवार के रहने के लिए जो मकान बनाए जाते हैं, यह आवासीय भवन कहते हैं | इनमें आवश्यक रूप से सोने के, बैठने के, स्नान करने, खाना बनाने तथा अन्य कार्यों के लिए अलग-अलग कमरे निर्मित किए जाते हैं | यह एकतली अथवा बहुतली होते हैं | इनमे वायु,  प्रकाश की उचित व्यवस्था की जाती है | इनमें पेयजल आपूर्ति तथा दूषित जल निकासी की व्यवस्था भी की जाती है | आवासीय भवनों

सर्वेक्षण के मूलभूत सिद्धांत(Basic principles of surveying)

सर्वेक्षण के मूलभूत सिद्धांत (basic principles of survey) कार्य की परिशुद्धता को दृष्टि में रखते हुए सर्वेक्षण के मूलभूत सिद्धांत निम्नलिखित हैं (Following are the basic principles of survey keeping in view the precision of work) 1. पूर्ण से अंश की ओर सर्वेक्षण कार्य बढ़ाना (Working from whole to the part) 2.नए बिंदुओं की स्थिति कम से कम दो संदर्भ बिंदुओं से निर्धारित करना (Locating new points from two Reference point) 1.Working from whole to the part  2.Determining the position of new points with at least two reference points (Locating new points from two reference point) 1.प्रथम सिद्धांत के अनुसार सर्वेक्षण कार्य पूर्ण से शुरू किया जाता है  |और इसे अंश की ओर बढ़ाया जाता है जिस क्षेत्र में सर्वेक्षण करना होता है, सर्वप्रथम उसमें पर्याप्त मुख्य नियंत्रण बिंदुओं का बड़ी सावधानी से चयन किया जाता है, और इन बिंदु की स्थिति की परिशुद्धता से जांच की जाती है,  अब इन बिंदुओं के द्वारा लघु बिंदु स्थापित किए जाती हैं जिनमें कम परिशुद विधि अपनाई जा सकती है |  

भवन की योजना (Planning of Buildings), भवन योजना के सिद्धांत (Principles of Building Planning)

भवन की योजना (Planning of Buildings)  भवन चाहे छोटा हो अथवा बड़ा आवासीय हो, सार्वजनिक हो अथवा औद्योगिक, इसकी पूर्ण योजना निर्माण से पहले बना लेना आवश्यक है | भवन की योजना बनाने से निम्न लाभ होते हैं - 1. आवश्यकता के अनुसार भवन के खंडों का विन्यास किया जा सकता है | 2. भवन की निर्माण लागत पर नियंत्रण रहता है | 3. भवन में अधिक सुविधाएं प्राप्त की जा सकती हैं | 4. संरचना में आवश्यक फेरबदल व तोड़फोड़ से बचा जा सकता है | 5. समय के अंदर भवन तैयार हो सकता है | सामग्री श्रमिक तथा समय का पूर्ण उपयोग होता है | Planning of Buildings  Whether the building is small or big residential, public or industrial, it is necessary to make its complete plan before construction. Building planning has the following benefits -  1. The building blocks can be configured as per the requirement.  2. Control over the construction cost of the building.  3. More facilities can be availed in the building.  4. Necessary alterations and sabotage in the structure can be avoided.